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बुधवार, 25 नवंबर 2009

sath do

तुम साथ दो तुम साथ भी दो

में लड़ना चाहता हू

एक घोषित युद्ध .

युद्ध

कलम से जो रंगने लगती है

कागजों को परम्परा के नाम पर

पुराण प्रतीकों

के माध्यम से कविता,

में इतिहास दोहराना का पक्षधर नही

मान्य्तायो का लिजलिजापन

सिहरन नही पीड़ा करता है



3 टिप्‍पणियां:

  1. Yeh Jamana DABANGAI ka hai , aur mujhko aisa mahsoos hota hai ki Hindi Sahitya main na ho magar hamaray Nagar kay KAWI khaskar woh jo hamaray mitr hain , Kawita main bhi Dabangai kartay / likhtay say nazar aatay hain.

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  2. मजहर साहब ने बड़ी दबंग टिप्पणी की है!

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  3. सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
    कभी इधर भी पधारिये ,

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