तुम साथ दो । तुम साथ न भी दो ।
में लड़ना चाहता हू
एक घोषित युद्ध .
युद्ध
कलम से जो रंगने लगती है
कागजों को परम्परा के नाम पर
पुराण प्रतीकों
के माध्यम से कविता,
में इतिहास दोहराना का पक्षधर नही ।
मान्य्तायो का लिजलिजापन
सिहरन नही पीड़ा करता है ।
Yeh Jamana DABANGAI ka hai , aur mujhko aisa mahsoos hota hai ki Hindi Sahitya main na ho magar hamaray Nagar kay KAWI khaskar woh jo hamaray mitr hain , Kawita main bhi Dabangai kartay / likhtay say nazar aatay hain.
जवाब देंहटाएंमजहर साहब ने बड़ी दबंग टिप्पणी की है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
जवाब देंहटाएंकभी इधर भी पधारिये ,